BA Semester-1 Philosophy - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2633
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।

उत्तर -

अद्वैत दर्शन के अनुसार आत्मा का शरीर और मन में एक होना बंधन है। अर्थात् आत्मा का शरीर के साथ आसक्त हो जाना बंधन है। आत्मा स्वभावतः नित्य, शुद्ध, चैतन्य मुक्त और अविनाशी है परन्तु अज्ञानवश वह बंधनग्रस्त हो जाता है। जब तक जीव में ज्ञान का उदय नहीं होगा तब तक उसे संसार के दुःखों का सामना करना पड़ेगा। अविद्या नाश होने के साथ ही जीव के पूर्व संचित कर्मों का अंत हो जाता है और वह दुःखों से छुटकारा पा जाता है। अविद्या या अज्ञान का अन्त ज्ञान से ही सम्भव है।

ब्रह्म का अनुभव सर्वोच्च ध्येय है, क्योंकि उससे संसार के मूल कारण अविद्या का नाश हो जाता है। आत्म या ब्रह्म जीव के अंदर छिपा हुआ सत्य है। वह सच्चिदानन्द है। आत्मा का ब्रह्म से अभेद का ज्ञान परम श्रेय है, क्योंकि उससे सभी क्लेश मिट जाते हैं। ब्रह्म नित्य परिनिष्पन्न वस्तु है। कर्म से उसकी प्राप्ति नहीं हो सकती है।

आत्मा नित्य मुक्त है। मोक्ष उसका पारमार्थिक स्वभाव है। वह अपरिणामी, नित्य, सर्वव्यापक नित्य, तृप्त, स्वयं प्रकार, पाप-पुण्य से अतीत, कालातीत और1विदेह है। वह पाप-पुण्य से परे है। मोक्ष आत्मा का सहज स्वरूप है। अविद्या ने इस स्वरूप को आवृत कर रखा है। जब अविद्या दूर हो जाती है तब यह स्वरूप प्रकट हो जाता है। वह शाश्वत जीवन है। वह आत्मा का अपने शुद्ध रूप में ब्रह्म में निवास है। ब्रह्म को जानने वाला जीव ब्रह्म हो जाता है। मोक्ष जीव का ब्रह्म में लय हो जाता है। पृथकत्व अविद्या के कारण है। जब विद्या से उसका नाश हो जाता है, तब जीव ब्रह्म हो जाता है।

मोक्ष उत्पन्न नहीं होता। इसलिए वह शारीरिक, मानसिक और वाचिक कर्मों पर आश्रित नहीं है। मोक्ष आत्मा का परिवर्तन नहीं है। यदि वह परिवर्तन होता तो नित्य न होता। मोक्ष प्राप्य नहीं है अपितु आत्मा का सच्चा स्वरूप है। यदि वह आत्मा के स्वरूप से भिन्न होता है तो उसकी प्राप्ति असम्भव होती। आत्मा सर्व व्यापक है और इसलिए मोक्ष उसमें नित्य वर्तमान रहता है। मोक्ष आत्मा का सहज स्वरूप है। वह आत्मा का ब्रह्म से अभेद है। वह क्रिया के लेश से मुक्त है। क्रिया से उत्पत्ति प्राप्ति विकार और संस्कार हो सकता है। मोक्ष इनमें से किसी भी स्वरूप का नहीं है। इसलिए वह क्रिया से प्रातव्य नहीं है।

जीव ईश्वर से अभिन्न है। दिव्यता जीव का असली रूप है। अपने पुण्य स्वरूप को न जानने के कारण ही वह बंधन में है। अपने दिव्य रूप को जान लेना ही मोक्ष है। जीव का दिव्य रूप अविद्या के आवरण से ढका है।

इस आवरण का नाश ईश्वर के अनुग्रह से ईश्वर के चिंतन से और अपने दिव्य रूप को जानने का प्रयत्न करने से हो सकता है। जीव का दिव्य ज्ञान और ऐश्वर्य अविद्या के कारण छिपा हुआ है। जीव शरीर के सम्पर्क के कारण ईश्वर से भिन्न प्रतीत होता है। जब अविद्या का पूर्णतया विनाश हो जाता है तब पुनर्जन्म नहीं होता। बन्ध अविद्या जनित उपाधियों के कारण है। जब ये उपाधियाँ नष्ट हो जाती हैं, तब जीव अपने सहज मोक्ष को प्राप्त करता है।

जीव ब्रह्म से अभिन्न है। वह तत्वतः एक नित्य और अपरिगामी चैतन्य है, जिस पर अविद्या का आवरण पड़ा है। जब वह आवरण टूट जाता है तब वह अपने सहज स्वरूप में प्रकाशित होता है। जीव तत्वतः स्वप्रकाश ब्रह्म ही अन्य वस्तुओं को प्रकाशित करता है लेकिन वह अन्य वस्तुओं से प्रकाशित नहीं होता। जब ब्रह्म का ज्ञान हो जाता है तब कोई कर्त्तव्य शेष नहीं रहता। कर्त्तव्य बुद्धि तिरोरित हो जाती है। मोक्ष परम आनन्द की अवस्था है। वह नैतिकता से ऊपर की कृत्कृत्यता की अवस्था है जो इस अवस्था को प्राप्त कर चुका है वह नैतिक कर्त्तव्यों से ऊपर उठ जाता है, क्योंकि वह द्वैत बुद्धि के परे पहुँच जाता है। पाप और पुण्य दोनों बंध के कारण हैं। पुण्य से स्वर्ग मिलता है और पाप से मर्क मिलता है। स्वर्ग परम सुख रूप है और नरक परम दुःख रूप है। विद्या इन दोनों का नाश करके जन्म-मरण के चक्र को भंग कर देती है। उसमें पाप पुण्य का नाश होकर मृत्यु के बाद मोक्ष हो जाता है।

आत्मा का ज्ञाता सभी वस्तुओं का ज्ञाता है। आत्म-वेत्ता को ब्रह्म को अपरोक्ष अनुभव होता है,लेकिन उसका बाह्य विषयों का ज्ञान समाप्त नहीं होता। उसके ज्ञान, राग, द्वेष, मोह आदि दोषों से युक्त नहीं होते। उसे विषयों से न अनुभव होता है न उसे मानता है, क्योंकि वह जानता है कि ब्रह्म से अभिन्न है। विषयों के ज्ञान में उसका ब्रह्म-ज्ञान ओत-प्रोत रहता है। उसकी इच्छाएँ बाह्य वस्तुओं का अनुसरण नहीं करतीं, बल्कि आत्मा की ओर उन्मुख हो जाती हैं। वह संसार के नानात्वज्ञान ब्रह्मनुभाव से तिरोहित हो जाता है। वह सांसारिक वस्तुओं के प्रभाव से मुक्त हो जाता है। यदि वह संसार के नानात्व को नष्ट कर सकता तो उसके मोक्ष के साथ सम्पूर्ण जीवों को मोक्ष हो जाता है।

शंकर जीव मुक्ति को मानते हैं। स्पष्ट है कि ब्रह्मनुभव से संसार का उच्छेद नहीं होता। ब्रह्म का ज्ञाता ब्रह्म में स्थित होता है। उनका जीवन ब्रह्ममय रहता है। वह शाश्वत आनन्द का लाभ करता है। सांसारिक सुखों से वह बिल्कुल पृथक् रहता है। सांसारिक सुख अविद्या से उत्पन्न होता है। ब्रह्मानन्द विद्या से प्राप्त होता है। शंकर ने कर्म-मुक्ति और जीव-मुक्ति को माना है। सगुण ब्रह्म की उपासना से पापों का नाश और ऐश्वर्य की प्राप्ति होकर कर्म मुक्ति होती है। लेकिन जो निर्गुण ब्रह्म का अनुभव कर लेते हैं उसे इसी जीवन से मुक्ति लाभ हो जाता है। वह देह धारण की दशा में ही ब्रह्म हो जाता है। उसे शाश्वत जीवन की प्राप्ति होती है। ब्रह्म का पूरा ज्ञान हो जाने पर जीवन्मुक्ति होती है।

मोक्ष नित्य है। वह कर्म से उत्पन्न नहीं किया जा सकता, क्योंकि कर्म अविद्या से उत्पन्न होता है। कर्म विद्या का विरोधी है। विद्या एक निर्विशेष आत्मा का ज्ञान है। ब्रह्म ज्ञान से सब आत्ममय दिखाई देता है तब इच्छाएँ उत्पन्न नहीं होतीं। जब ब्रह्म विद्या से अविद्या का नाश हो जाता है। तब आत्मा के अतिरिक्त" और कुछ नहीं दिखाई देता। कर्म से कभी ब्रह्म-ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। कर्म और ज्ञान, अन्धकार और आकाश की भांति विरुद्ध स्वभाव वाले हैं। ज्ञान, विद्या और कर्म अविद्या का नाश करके मोक्ष की प्राप्ति करता है। ज्ञान निवृत्ति मार्ग है जबकि कर्म प्रवृत्ति मार्ग है। ज्ञान की प्राप्ति केवल दर्शन के अध्ययन से ही हो सकती है। वेदान्त के अध्ययन के लिए साधक को साधना की आवश्यकता होती है। इन्हें "साधन चतुष्टय" कहा जाता है। साधन चतुष्टय निम्नलिखित हैं-

1. नित्यानित्य वस्तु विवेक साधक को सर्वप्रथम यह जानना चाहिए कि क्या नित्य है और क्या अनित्य है। जो हमेशा एक ही तरह से रहता है और सदा उपस्थित रहता है उसे नित्य कहते हैं और नित्य के अलावा जो कुछ भी है वह अनित्य है।

2. इहा मुत्रार्थ भोग-विरोग उसे लौकिक तथा पारलौकिक भोगों से विरक्त होना चाहिए। उसे आत्मा से प्रेम करना चाहिए और आत्म प्रेम के लिए अन्य वस्तुओं के प्रेम को त्याग देना चाहिए।

3. शमदभादि साधन उसे शम (मन को संयमित रखना), दम (इन्द्रियों को नियंत्रित रखना), श्रद्धा (शास्त्रों के प्रति सद्भाव या निष्ठा रखना), समाधान (चित्त का ज्ञान साधना में लगाना), उपरति (विषय-कामना से दूर हटना), तितिक्षा ( सहिष्णुता सर्दी गर्मी सहना करना) साधनों को अपनाना चाहिए।

4. मुमुक्षत्व साधन मोक्ष प्राप्ति के लिए अपने संकल्प को दृढ़ बनाए। उपर्युक्त साधनों से युक्त वेदान्त शिक्षा लेने के लिए गुरु के सम्मुख उपस्थित होना चाहिए। गुरु साधक को श्रवण, मनन और निविध्यासन की प्रणाली का सहारा लेना पड़ता है। गुरु के उपदेशों का ध्यानपूर्वक सुनना श्रवण है। सुने हुए उपदेशों को मन में विचार करना मनन है और उपदेशों का बार-बार परिशीलन करना निविध्यासन है।

इस प्रकार बारम्बार साधनरत रहने पर जीव के विभिन्न कर्मों के संस्कार नष्ट हो जाते हैं तब उसकी निष्ठा ब्रह्म में लीन हो जाती है। उसकी निष्ठा को देखकर गुरु उसे उपदेश देते हैं। तत्वमीमांसा अर्थात् वह तू है ( तू ब्रह्म है) इस वाक्य को मुमुक्ष एकाग्रचित होकर अनुभव करता है और जब उसे यह अनुभव हो जाता है कि उसमें और ब्रह्म में कोई अन्तर नहीं है तब वह कहता है कि अहं ब्रहास्मि अर्थात् में ब्रह्म हूँ। यहाँ पर वह मुक्त हो जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  2. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  3. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  5. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  9. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  12. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  13. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  14. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  18. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  19. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  20. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  21. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  22. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  23. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  24. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  25. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  28. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  29. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  30. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  32. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  33. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  34. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  35. प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
  36. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
  38. प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
  39. प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
  44. प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
  45. प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  47. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
  48. प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
  49. प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
  53. प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  54. प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
  56. प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
  57. प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
  58. प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
  59. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
  61. प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
  62. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  63. प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
  66. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
  67. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
  70. प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
  72. प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
  73. प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
  76. प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
  79. प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
  80. प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
  82. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
  83. प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
  84. प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
  85. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
  87. प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
  88. प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
  90. प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  91. प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
  92. प्रश्न- सांख्य दर्शन के पुरुष की अनेकता की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
  94. प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
  95. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- योग दर्शन के अभ्यास के अंग कौन-कौन से हैं?
  97. प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
  98. प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
  99. प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
  100. प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
  101. प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  104. प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
  105. प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
  106. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  107. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रमाण शास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  109. प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
  110. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
  111. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  116. प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
  118. प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
  121. प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
  122. प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
  123. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
  124. प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
  125. प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
  129. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  130. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  131. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  133. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  134. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  135. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  136. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
  137. प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
  138. प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  140. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
  141. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
  142. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  143. प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
  144. प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
  145. प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
  146. प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  147. प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
  148. प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
  149. प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
  150. प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
  151. प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
  152. प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
  153. प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
  154. प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
  155. प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
  156. प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
  157. प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
  159. प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
  161. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
  162. प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
  163. प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
  164. प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
  165. प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  166. प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
  167. प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
  168. प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  169. प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
  170. प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
  171. प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  172. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
  173. प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
  174. प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
  175. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
  176. प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
  177. प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
  178. प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  179. प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
  180. प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
  181. प्रश्न- चित्त क्या है?

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